Sunday, May 3, 2020

Guru Paduka Stotram



Guru Paduka Stotram
अनंत संसार समुद्र तार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्यां। 
वैराग्य साम्राज्यद पूजनाभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥१॥

कवित्व वाराशि निशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावांबुदमालिक्याभ्यां। 
दूरीकृतानम्र विपत्तिताभ्यां नमो नमः श्री गुरु पादुकाभ्यां॥२॥

अच्युताष्टकं



अच्युताष्टकं

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥ १॥

एही मुरारे/Ehi Murare

एही मुरारे
Ehi Murare



एही मुरारे कुंजबिहारी 
एही प्रनता जना बँधो, 
हे माधव मधु मथना वरेण्य 
केशव करुणा सिन्धो |

हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Lord Hanuman in Hindi)


हनुमान जी के 108 नाम (108 Names of Lord Hanuman in Hindi)


1. आंजनेया : अंजना का पुत्र
2. महावीर : सबसे बहादुर
3. हनूमत : जिसके गाल फुले हुए हैं
4. मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसे प्रिय
5. तत्वज्ञानप्रद : बुद्धि देने वाले

श्री कृष्ण चालीसा


श्री कृष्ण चालीसा
॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। 
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥

श्री दुर्गा चालीसा


श्री दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी. नमो नमो अम्बे दुःख हरनी.
निरंकार है ज्योति तुम्हारी. तिहूँ लोक फ़ैली उजियारी.
शशी ललाट मुख महा विशाला. नेत्र लाल भृकुटी विकराला.

Mere to Giridhar Gopal, MeeraBai Bhajan

Mere to Giridhar Gopal

MeeraBai Bhajan
Voice -"Vanijairam ji"

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।

Bala main bairagan hoongi - Meerabai Bhajan


Bala main bairagan hoongi 

Meerabai Bhajan


बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे सोही भेष धरूंगी।


सील संतोष धरूं घट भीतर समता पकड़ रहूंगी।
गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा मन मुद्रा पैरूंगी।

Papeeha Re Peev Ki Baani Na Bol - Meera Bhajan

Papeeha Re Peev Ki Baani Na Bol

पपैया रे पिवकी बाणि न बोल।
सुणि पावेली बिरहणी रे थारी रालेली पांख मरोड़।।

चांच कटाऊँ पपैया रे ऊपर कालोर लूण।
पिव मेरा मैं पिव की रे तू पिव कहै स कूण।।

Mere to Giridhar Gopal, MeeraBai Bhajan


Mere to Giridhar Gopal

MeeraBai Bhajan
Voice -"Vanijairam ji"

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई

माई री! मैं तो लियो गोविंदो मोल।

बिना प्रेम धीरज नहीं (भक्ति गीत) / Bina Prem Dheeraj Naahi Bhakti Geet



Bhajan Lyrics
 (Written by Saint Kabir Das) : 
बिना प्रेम धीरज नहीं,
बिरह बिना बैराग..
सतगुरु बिना ना छुटिहै, 
मन मनसा की दाग
बिना प्रेम धीरज नहीं ..

प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो, सूरदास का यह भक्ति गीत




Song lyrics:
प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो |
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो ||

Krishnashtakam by Jagadguru Adi Shankaracharya



Krishnashtakam

 by Jagadguru Adi Shankaracharya



भजे  व्रजैक  मण्डनम्, समस्त  पाप  खण्डनम्,
स्वभक्त चित्त  रञ्जनम्, सदैव  नन्द  नन्दनम्,
सुपिन्छ   गुच्छ  मस्तकम् , सुनाद  वेणु  हस्तकम् ,
अनङ्ग  रङ्ग  सागरम्, नमामि  कृष्ण  नागरम् १

शिव चालीसा (Shiv Chalisa)



शिव चालीसा


दोहा

जय गणेश गिरिजासुवन, मंगल मूल सुजान

कहत अयोध्यादास तुम, देउ अभय वरदान


चौपाई

जय शिव शङ्कर औढरदानी। 
जय गिरितनया मातु भवानी॥

सर्वोत्तम योगी योगेश्वर। 
सर्वलोक-ईश्वर-परमेश्वर॥

सब उर प्रेरक सर्वनियन्ता। 
उपद्रष्टा भर्ता अनुमन्ता॥

पराशक्ति - पति अखिल विश्वपति। 
परब्रह्म परधाम परमगति॥

सर्वातीत अनन्य सर्वगत। 
निजस्वरूप महिमामें स्थितरत॥

अंगभूति - भूषित श्मशानचर। 
भुजंगभूषण चन्द्रमुकुटधर॥

वृषवाहन नंदीगणनायक। 
अखिल विश्व के भाग्य-विधायक॥

व्याघ्रचर्म परिधान मनोहर। 
रीछचर्म ओढे गिरिजावर॥

कर त्रिशूल डमरूवर राजत। 
अभय वरद मुद्रा शुभ साजत॥

तनु कर्पूर-गोर उज्ज्वलतम। 
पिंगल जटाजूट सिर उत्तम॥

भाल त्रिपुण्ड्र मुण्डमालाधर। 
गल रुद्राक्ष-माल शोभाकर॥

विधि-हरि-रुद्र त्रिविध वपुधारी। 
बने सृजन-पालन-लयकारी॥

तुम हो नित्य दया के सागर। 
आशुतोष आनन्द-उजागर॥

अति दयालु भोले भण्डारी। 
अग-जग सबके मंगलकारी॥

सती-पार्वती के प्राणेश्वर। 
स्कन्द-गणेश-जनक शिव सुखकर॥

हरि-हर एक रूप गुणशीला। 
करत स्वामि-सेवक की लीला॥

रहते दोउ पूजत पुजवावत। 
पूजा-पद्धति सबन्हि सिखावत॥

मारुति बन हरि-सेवा कीन्ही। 
रामेश्वर बन सेवा लीन्ही॥

जग-जित घोर हलाहल पीकर। 
बने सदाशिव नीलकं� वर॥

असुरासुर शुचि वरद शुभंकर। 
असुरनिहन्ता प्रभु प्रलयंकर॥

नम: शिवाय मन्त्र जपत मिटत सब क्लेश भयंकर॥

जो नर-नारि रटत शिव-शिव नित। 
तिनको शिव अति करत परमहित॥

श्रीकृष्ण तप कीन्हों भारी। 
ह्वै प्रसन्न वर दियो पुरारी॥

अर्जुन संग लडे किरात बन। 
दियो पाशुपत-अस्त्र मुदित मन॥

भक्तन के सब कष्ट निवारे। 
दे निज भक्ति सबन्हि उद्धारे॥

शङ्खचूड जालन्धर मारे। 
दैत्य असंख्य प्राण हर तारे॥

अन्धकको गणपति पद दीन्हों। 
शुक्र शुक्रपथ बाहर कीन्हों॥

तेहि सजीवनि विद्या दीन्हीं। 
बाणासुर गणपति-गति कीन्हीं॥

अष्टमूर्ति पंचानन चिन्मय। 
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग ज्योतिर्मय॥

भुवन चतुर्दश व्यापक रूपा। 
अकथ अचिन्त्य असीम अनूपा॥

काशी मरत जंतु अवलोकी। 
देत मुक्ति -पद करत अशोकी॥

भक्त भगीरथ की रुचि राखी। 
जटा बसी गंगा सुर साखी॥

रुरु अगस्त्य उपमन्यू ज्ञानी। 
ऋषि दधीचि आदिक विज्ञानी॥

शिवरहस्य शिवज्ञान प्रचारक। 
शिवहिं परम प्रिय लोकोद्धारक॥

इनके शुभ सुमिरनतें शंकर। 
देत मुदित ह्वै अति दुर्लभ वर॥

अति उदार करुणावरुणालय। 
हरण दैन्य-दारिद्रय-दु:ख-भय॥

तुम्हरो भजन परम हितकारी। 
विप्र शूद्र सब ही अधिकारी॥

बालक वृद्ध नारि-नर ध्यावहिं। 
ते अलभ्य शिवपद को पावहिं॥

भेदशून्य तुम सबके स्वामी। 
सहज सुहृद सेवक अनुगामी॥

जो जन शरण तुम्हारी आवत। 
सकल दुरित तत्काल नशावत॥

|| दोहा ||

बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार॥

तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय॥

दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥

कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥